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रविवार, 14 अप्रैल 2013

बिस्मिल की एक कविता


-----------"राम प्रसाद बिस्मिल" बेहतरीन कवि, शायर भी थे उनकी अंतिम रचना जो फ़ासी से कुछ समय पहले लिखी थी.  यहाँ आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ.

मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !


मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !


ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

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