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बुधवार, 16 मई 2012

एक कथा कुछ-कुछ लाइव सी


            
‘हाँ-हाँ मैं तिवारी जी से बात करके अभी बताता हूँ’- फेसबुक चैट पर बड़े भाई ने सन्देश भेजा. दरअसल अभी-अभी पत्नी ने फोन पर बताया कि मिसिर बाजार में किसी युवक की हत्या हो गयी . मैंने बड़े भाई से इसलिए पूछ लिया कि उनके एक खास मित्र वहीँ प्राथमिक में अध्यापक हैं और थोड़े राजनैतिक भी, सो मन आशंकाओं से खाली न रह सका . ‘और कहो क्या मौज है, यहाँ तो मछरी चांपी जा रही है’ भाई का अगला सन्देश देख बड़ी कोफ़्त हुई और कुछ झुंझलाहट भी.
      दो तीन दिन बीत चुके हैं. गुवाहाटी से चलके जगदीशपुर आ गया हूँ. पत्नी विद्यालय चली गयी हैं. पूरी कालोनी दोपहरी के सन्नाटे में कुछ ऊबती, कुछ अलसाई सी पड़ी है. बचपन में जब हम पिता के साथ हर सोमवार उनके स्कूल जाया करते थे तो रस्ते में एक कस्बेनुमा शहर में एक रिश्तेदार के घर  दोपहरें बिताया करते थे. खाली दोपहरों में सिर्फ कुछ फेरीवालों की गूंजती आवाजें. बरफ बेचने वाले के भोंपू और उसकी साईकिल के पीछे धूल उड़ाते, शोर मचाते कुछ नंग-धडंग बच्चे. आज  भी जब मैं ऐसे किसी कस्बेनुमा शहर या शहरनुमा कस्बे में होता हूँ तो मुझे वही बचपन याद आता है. मन की हजार उलझनों के बीच भी आज रह-रह कर उसी घटना से जुड़ी बातें मन को घेर ले रही हैं.
‘भई, मैं तो गया था देखने, पांच गोली मारी है. मैजिक में लाद के ले आये थे डेड बोडी.’
‘ऐसा नहीं करना चाहिए था. अरे कोर्ट मैरिज कर ही ली थी तो जाने देते जहाँ जाना था.’
‘कम से कम लड़की तो खुश रहती. ऐसे में कौन सी खुशी दे दी आपने उसको.’
‘हमारी बिटिया ऐसा करे तो हम तो मतलब न रखें , जाओ भैया तुम अपने में खुश, हम अपने में. ये क्या हुआ कि लड़के को गोली मार दी, अपनी बिटिया को क्यों न मार दिया.’
‘अरे मैडम! अब वो ज़माना नहीं रहा खन के गाड़ने वाला. बड़ा बदलाव आ गया है. अब बच्चे अपनी मर्ज़ी चलते हैं. गनीमत इसी में है कि जो कुछ भी है चुपचाप देखते सुनते पड़े रहो.’
कल रात खाने पर पत्नी ने धीरे धीरे एक संक्षिप्त कथा उवाची. कहा- ‘जानते हो वो लड़का चमार था. और लड़की थी ब्राह्मण. लड़के को इन्हीं लोगों ने पढ़ाया-लिखाया था. अभी आई.ए.एस वाला इंटरव्यू दिया था. पी.सी.एस. ०९ में अंतिम चयन हो गया था. सुना कि भाई ने ही मारा है. कोर्ट मैरिज भी कर ली थी. कोई कह रहा था कि घर से भागने वाले थे. भाग ही गए होते तो अच्छा होता. जब इतना कुछ हो गया था तो लड़के को भी समझना चाहिए था. थोड़ा तो सावधान रहना चाहिए था.’ मैंने पत्नी से कोई तर्क नहीं किया था, न ही उस लड़के द्वारा किये जा सकने वाले वाले पूर्व उपायों पर ही कोई टिप्पणी दी. पर अभी सोच रहा हूँ कि क्या सचमुच उसके भाग जाने मात्र से ही सब कुछ ठीक हो जाता. शायद उससे गलती हुई, प्रेम किया सो किया, शादी भी कर ली, और भागा भी नहीं.
शेष कथा ‘शायद’ में:
शायद उस लड़के के पिता उस लड़की के पिता के घर  अपने पिता की उस हरवाही की परम्परा निभाते हुए मर खप गए होंगे जिसे इस लड़के ने न निभाया बल्कि कुछ पढ़ने-लिखने के महापाप और दुष्कर्म में लग गया होगा जिसके कारण ही उसकी बुद्धि भ्रष्ट हुई.
एक दिन गांव की सायंकालीन पुलिया संसद में उस लड़की के भाई की किसी से किसी बात पर झड़प हो गयी होगी और विपक्षी दल ने ब्रह्मास्त्र ही चला दिया होगा –‘हाँ-हाँ, जानत अही बड़का गुंडा बना अहा. बहिन .......गली-गली, भाई के नाँव बजरंग बली.’
कभी चौराहे से गुजरते हुए यह भी सुन ही लिया होगा कि हे देखा हो ओनही अहाँ पान्डे जी के सपूत जेकर बहिनिया चमारे से फंसी बा.
सुना कि लड़के के माँ-बाप नहीं हैं, परिवार बड़ा गरीब है. इसका केस कौन लड़ेगा. पिछली सरकार होती तो बच्चा लोगों की समझ में आ जाता. अरे, ऐसा नहीं है-कोई तो साथ देगा ही. नहीं कुछ तो राजनीति  चमकाने के लिए ही नेता लोग साथ तो खड़े ही होंगे. और शायद हो ही जाए ऐसा कुछ.
पर शायद होगा कुछ यूँ. एक स्थानीय नेता ने अपना पूरा जोर लगा दिया और कुछ निर्णय की स्थिति आने पर अनुकूल अवसर पा जाति की सहानुभूति (वोट) और ढेर कुछ गोपनीय (?) पाने का लालच पा चुप बैठ गए.
जमानत पर छूट कर आये वीर भाई उन्हीं देश के भविष्य युवा नेताजी के गले में बाहें डाले दिखेंगे जो परसों बाजार में आ गहन शोक-संवेदना प्रकट कर गए हैं और दोषियों के खिलाफ सरकार से सख्त कार्यवाही की जोरदार मांग कर गए हैं. अमेठी के पूर्व प्रत्याशी की अगुआई में कार्यकर्ता बैठक में शामिल हो लौटेंगे अपने कस्बेनुमा शहर में –मोटी-मोटी मालाओं से मोटी गर्दन को ढंके हुए.
और संझलौका में जब गांव की पुरानी चकरोटनुमा सड़क से गुजरेगा तो –
‘हे हो ई तो नेता बनिगा.’
‘के हो ?’
‘अरे उहै , जेकर बहिनिया...........’
 टिप्पणी :
१.      उस लड़की के बारे में उतना ही कहा जितना चर्चाओं में सुना था.
२.       भाई ने पता करके पहले ही बता दिया था कि तिवारी जी से बात हो गयी है. वे ठीक हैं. घबराने की कोई बात नहीं है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ ज्यादा ही मितकथन में बात हों गयी. फिर से पढ़ना पड़ेगा. शुभकामनाओं के साथ बधाइयाँ.

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    1. रमाकांत सर , आरंभिक विनम्र प्रयास है. निर्देश का इन्तेज़ार. फिर से पढ़ने का श्रम करेंगे- शुक्रिया.

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