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बोल कि लब आजाद हैं तेरे
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बुधवार, 12 सितंबर 2012
आत्मकथन
गहनों से लदी-फंदी बीबी
लगती है बड़ी ही सुघड़ और
माँ भी बुढापे मे नौकरीशुदा बेटे को देख
सुखी हैं, सुकून मे हैं
बस
मैं ही ज़रा सा
और झुक गया हूँ
जाने किस मार से |
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