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शनिवार, 15 सितंबर 2012

रामविलास शर्मा जन्मशती समारोह

यह वर्ष प्रतिष्ठित आलोचक और सभ्यता-समीक्षक डॉ. रामविलास शर्मा का जन्मशताब्दी वर्ष है। डॉ. रामविलास शर्मा ने अपने लेखन में हमेशा वंचितों और हाशिये पर मौजूद जनता के हक़ के लिये आवाज़ बुलन्द की। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त ग़रीबी, भृष्टाचार, शोषण और अन्याय का न सिर्फ़ विरोध किया बल्कि उनकी जड़ों की पड़ताल करने की एक सुसंगत इतिहास-दृष्टि का भी विकास किया। उन्होंने हमें भारत के इतिहास को नई रोशनी में परखने की एक पुख़्ता समझ दी। इतिहास की यह नई समझ हमे अपनी परम्परा, स्मृति, समाज और साहित्य में व्याप्त विद्रोह और असहमति के स्वरों को सतर्क दृष्टि के साथ पहचानने में सक्षम बनाती है।



क़ाबिले-ग़ौर है कि रामविलास जी के लिये असहमति और विद्रोह ऐसे मूल्य हैं जो समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण और अनाचार का विरोध करने के लिये ज़रूरी हैं। अन्याय, शोषण, अनाचार और सामाजिक भेदभाव को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जाँचते-परखते हुए उन्होंने पाया कि इनकी जड़ें भारत में औपनिवेशिक शासन की स्थापना के साथ जमती और मजबूत होती गईं। इसीलिये साम्राज्यवाद-विरोध और स्वाधीनता का राष्ट्रीय आंदोलन उनके समस्त लेखन की चिंता का केंद्र बिंदु है।

प्रतिबद्ध मार्क्सवादी होने के बावजूद भारत में औपनिवेशिक शासन की स्थापना को लेकर व्याप्त मार्क्सवादी पूर्वाग्रहों का रामविलास जी ने डट कर विरोध किया। उन्होंने साम्राज्यवाद के ख़तरों के प्रति हमें आगाह किया, उसके बदलते चोलों और रंगों को पहचानने की तमीज़ दी। आज़ादी के असली मायने क्या होते हैं? वह कितनी मूल्यवान होती है? और इस आज़ादी पर मर-मिटने वाला जज़्बा कैसा होता है?- इन तमाम सवालों के उत्तर रामविलास जी का लेखन देता है।

जिस साम्राज्यवादी शासन में रामविलास जी ने ग़रीबी, अन्याय, अनाचार, भेदभाव और शोषण की जड़ों को खोजा था, आज वही साम्राज्यवाद एक बार फिर हमारे सामने चोला बदल कर नये रूप में उपस्थित है। यह नवसाम्राज्यवाद और नवउपनिवेशवाद हमें दमन के भौतिक साधनों का प्रयोग करके ग़ुलाम नहीं बनाता अपितु हमारी समृद्ध संस्कृति, स्मृति और प्रतिरोध की चेतना को तबाह करके, हमें मानसिक रूप से बीमार और सांस्कृतिक रूप से विपन्न बनाकर, हमें हमारी जड़ों से काटकर अपने स्वार्थी मंसूबों को पूरा करता है। इसकी पकड़ तिजारत की मंडियों सत्ता के गलियारों तक है। स्टॉक एक्सचेंज से लेकर बहुराष्ट्रीय निगमों के अनगिनत रूपों में यह हमारे सामने मुँह बाये खड़ा है। सिनेमा, मीडिया, साहित्य और कला के व्यावसायिक स्वरूपों में इसने अपनी हिमायती सँस्कृति के कुतर्कों को बखूबी गढ़ा है। यह नैतिक रूप से लकवाग्रस्त एक ऐसा समाज को रचने पर आमादा है जहाँ आम आदमी की शिनाख़्त या तो उपभोक्‍ता के तौर पर है, या फिर में हाइटेक सत्ता-बाज़ार के सूचना-तंत्र के प्रोफ़ाइल में दर्ज डाटा के रूप में। रामविलास जी नें साम्राज्यवाद के इन तमाम रूपों की निशानदेही वक़्त से पहले कर ली थी और उसके खतरनाक इरादों के प्रति हमें आगाह भी किया था। इसीलिए जन्मशताब्दी वर्ष में डा. रामविलास शर्मा को याद करना खास अहमियत रखता है।

रामविलास जी ने अपने जीवन का लंबा समय (लगभग 40 वर्ष) गुज़ारा. इस दौरान उन्होंने आगरा के युवा संस्कृतिकर्मियों को लगातार प्रोत्साहित किया. आगरा की सुलहकुल की संस्कृति के विकास में रामविलास जी का सार्थक हस्तक्षेप रहा। न सब बातों के मद्देनज़र यह ज़रूरी है कि आगरा में रामविलासजी को याद करते हुए आयोजन किया जाए।

इस दृष्टि से डा. रामविलास शर्मा के चिंतक व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों पर चर्चा-परिचर्चा के लिये उनकी कर्मभूमि आगरा में दि. 6-7 अक्टूबर, 2012 को दो-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया है जिसमें ‘औपनिवेशिक मुक्ति के विमर्श और रामविलास शर्मा’, ‘भाषा और समाज’ ‘रामविलास शर्मा की आलोचना-दृष्टि’ पर केंद्रित देश के जाने-माने विद्वानों की वक्‍तृता और परिचर्चा होगी।

उल्लेखनीय है कि यह आयोजन बिना किसी सांस्थानिक अनुदान के, बिना किसी सरकारी या ग़ैरसरकारी संस्था, एन.जी.ओ. आदि की आर्थिक सहायता के, सिर्फ़ आगरा की जनता और बुद्धिजीवियों के सहयोग से सम्पन्न हो रहा है। सूर और नज़ीर की विरासत को सँजोए सुलहकुल की नगरी आगरा ने इस बहाने एक बार फिर अपनी साहित्यिक चेतना को मुखरित किया है जिसके लिए हम स्थानीय जनता और प्रबुद्ध नागरिकों के आभारी हैं।

आइए मिलजुलकर इस आयोजन को सफल बनाएँ !

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