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बुधवार, 20 मार्च 2013

सच कहना कन्हाई


सच कहना कन्हाई
कैसा लगता तुमको
जो कभी गोपियाँ तुम्हारा दूध, दही, मक्खन
चुराकर खातीं और बचने पे बिखरा जातीं तुम्हारे ही आंगन में
जब लगा रहे होते तुम कालिंदी में डुबकियां
कदंब डाल पे तुम्हारे कपड़े लिए
मुस्कराती, इठलाती छेड़ती तुम्हें
सच कहना कन्हाई
कैसा लगता तुम्हें
जो राधा के प्रिय होते
सोलह हज़ार गोप
भले ही वह हमेशा तुमसे कहती
तुम्ही उसको सबसे प्रिय हो
हृदय के सबसे नजदीक |


2 टिप्‍पणियां:

  1. भाई, मुझे लगता है कि हमने उस कथा को जितना सुना है, वह एक पुरुषवादी समाज में बुना हुआ सुना है. वे वैसा ही सोचते थे. लेकिन, सूरदास, जिनकी कवितायेँ , कृष्ण के बारे में जानने का सबसे लोकप्रिय साधन है, को पढ़ कर कहा जा सकता है कि कृष्ण कट्टर नहीं रहे होंगे. उनके यहाँ गोपियाँ, भक्तिकाल के किसी भी कवि के स्त्रियों के मुकाबले अधिक स्वतंत्र हैं. कृष्ण को भी शायद ही आपत्ति होती.
    वैसे आपका प्रश्न ज्यादा मार्मिक है. बेहतरीन कविता..

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  2. कृष्ण रहे होंगे सर स्वतंत्र, मैं आपकी इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ . सवाल आज के कन्हैयों का है .

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