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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

नदी: एक दिन मिलकर रहेगी-गीतेश

सभी नदियां नहीं मिलती समंदर में
कुछ बिला जाती हैं रेत में
और कुछ समा जाती हैं बड़ी नदियों में ।
कुछ तो बँट जाती  हैं कई-कई धाराओं में |
पर कुछ ऐसी भी होती हैं
जो
खो जाती हैं
या यूं कहिए की खोई हुई सी लगती हैं
जबकि सच में वो खोई नहीं हैं
वो तलाश रही हैं अपने लिए अपना ही रास्ता ,
दिखती नहीं पर हैं कहीं गहराई में
ऊपर-ऊपर से कोई हलचल नहीं
पर भीतर ही भीतर
उबलती हैं ।
दिखेंगी एक दिन जरूर
और मिलकर रहेंगी समंदर में
और समंदर को भी नदी कर देंगी । 

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना! मुझे यह आशावादी स्वर भाता है । साधुवाद !

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  2. दिखती नहीं पर हैं कहीं गहराई में
    ऊपर-ऊपर से कोई हलचल नहीं
    पर भीतर ही भीतर
    उबलती हैं ।
    वाह!

    जवाब देंहटाएं